Mummy padh rahi hai - 1 in Hindi Motivational Stories by Pradeep Shrivastava books and stories PDF | मम्मी पढ़ रही हैं - 1

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मम्मी पढ़ रही हैं - 1

मम्मी पढ़ रही हैं

प्रदीप श्रीवास्तव

भाग-1

कैसी हो हिमानी, क्या कर रही हो?

-ठीक हूं शिवा, दिव्यांश का होमवर्क पूरा करा रही हूं, तुम बताओ तुम क्या कर रही हो?

-मैं बहुत टेंशन में हूं यार। आज सुबह ही तुम्हें फ़ोन करने वाली थी लेकिन काम इतने थे कि कर ही नहीं पाई।

-अच्छा, लेकिन तुम्हें किस बात की टेंशन हो गई?

-क्या यार तुम तो ऐसे बोल रही हो कि जैसे मैं इंसान ही नहीं हूं और जब मैं इंसान नहीं हूं तो मुझे टेंशन नहीं, क्यों ऐसा ही है। है न।

- अरे नहीं भाई तुम तो बुरा मान गई। मेरा मतलब यह था कि टेंशन तो हम जैसे लोगों को होती है कि हसबैंड के लिए सारा काम टाइम से करो नहीं तो कहीं उनका पारा सातवें आसमान पर न पहुंच जाए। हर ग्यारह महीने बाद मकान बदलने की टेंशन, किराया बढ़ने की टेंशन। मुंह मांगा किराया देने के बाद भी मकान मालिक की भौंहें तो नहीं तनी हैं इसका टेंशन, ज़िंदगी खानाबदोशों’ सी हो गयी है इसका टेंशन। बार-बार मकान बदलने से जो नुकसान होता है उसका टेंशन। कोई मेहमान आ जाए तो कम जगह के चलते उसे कहां ठहराएं इसका टेंशन। मतलब कि यहां ज़िंदगी का दूसरा नाम ही टेंशन हो गया है। जबकि निजी मकान के चलते और पति के तीन-चार महीने के अंतर पर आने के कारण तुम इन सब टेंशन से दूर हो। हो कि नहीं, बताओ।

-कमाल है तुमने तो पूरा लेक्चर ही दे डाला। मगर हिमानी सच यह है कि यहां भी ज़िंदगी में कम टेंशन नहीं है। हसबैंड के होते हुए भी चार साल से अकेले ही रह रही हूं। तीन-चार महीने में आते हैं और कब उनकी छुट्टी खत्म हो जाती है पता नहीं चलता है। सब कुछ अकेले ही संभालना पड़ता है। दूसरे इतना बड़ा दुमंजिला मकान है, लेकिन कोई किराएदार न रखने की इनकी जिद के चलते खाली ही रहता है। जिसकी साफ-सफाई में ही हालत खराब हो जाती है। ऊपर से पांच साल के बच्चे के साथ अकेले रहना कितना तकलीफ़देह है इसका अंदाजा लगा सकती हो।

-सही कह रही हो। इसी लिए तो कहती हूं कि भाई साहब से कह कर एक पोर्सन किराए पर मुझे दे दो। मैं किराए में कमी नहीं रखूंगी। बस हर ग्यारह महीने में मकान बदलने, ब्रोकर को कमीशन देने से थोड़ी राहत मिल जाएगी और तुम्हारा अकेलापन भी थोड़ा कम होगा।

-हिमानी सच कहूँ तो मैं भी यही सोचती हूं लेकिन क्या बताऊँ इनकी जिद के आगे मेरी कुछ नहीं चलती। अकेलेपन से खीझ कर कई बार तो मैं यहां तक कह चुकी हूं कि तुम बी.एस.एफ. की नौकरी छोड़कर यहीं कोई बिजनेस करो तो अच्छा है। लेकिन मानते ही नहीं। कहते हैं तुम क्या जानो फौजी होने का क्या मतलब होता है। इस पर मेरे गुस्सा आ जाती है। इसीलिए पिछली दो बार से ये बार-बार एक और बच्चे के लिए कह रहे हैं। लेकिन मैं साफ-साफ कह देती हूं कि बच्चे पैदा करना और पालना भी कोई हंसी खेल नहीं है। जब यहां रहोगे तभी दूसरा करेंगे नहीं तो एक ही काफी है। एक ही जब तक जागता है नाक में दम किए रहता है। दूसरे में तो जान ही निकल जाएगी।

-तुम सही कह रही हो। ये मियां लोग तो बस जबान चला देते हैं कि और बच्चे पैदा करना है। गोया बच्चे पैदा करना न हो गया जैसे गोल-गप्पे खाना हो गया। यही हाल मेरे यहां है। कई महीने से कह रहे हैं कि दिव्यांश छः साल का हो गया है अब एक और बच्चा पैदा करते हैं। जानती हो मैंने साफ कह दिया कि देखो जब तक खानाबदोसों की ज़िंदगी है तब तक अगले बच्चे के बारे में सोचेंगे ही नहीं। पहले मकान बनवाओ, अब अपने मकान में ही अगला बच्चा पैदा करूंगी। फिर एक की परवरिश तो कायदे से कर लो। वकालत के पेशे में कमाई ही कितनी हो पा रही है।

-अरे कैसी बात कर रही हो। वकीलों की इनकम का तो कोई ठिकाना ही नहीं है।

-तुम सही कह रही हो लेकिन ऐसे कुछ ही वकील हैं जो लाखों क्या करोड़ों भी कमाते हैं। लेकिन ज़्यादातर के लिए किसी तरह ज़िंदगी चलने भर का ही हो पाता है। मेरे यहां भी ठीक-ठाक ही कमा लेते हैं। लेकिन इतना नहीं कि पचास-साठ लाख में मिलने वाला पांच-छः सौ स्क्वॉयर फिट का एक छोटा सा मकान ले सकें। सच कहूँ तो आज से आठ-दस साल पहले मैंने सोचा ही नहीं था कि लखनऊ जैसे शहर की तस्वीर इस तरह बदल जाएगी कि एक मकान लेना हम जैसे लोगों के लिए एक सपना बन जाएगा। तुम इस मामले में लकी हो कि शादी के साल भर बाद ही इतना बड़ा मकान कर लिया।

-क्या भाग्यशाली यार, इनकी तनख्वाह से थोड़े ही हो गया। यह सब मेरे फादर के कारण हुआ। उन्होंने कोई लड़का न होने के कारण सारी प्रॉपर्टी बेच कर हम चारों बहनों को बराबर-बराबर पैसा दे दिया था। केवल एक छोटा सा मकान रखा था अपने लिए। उसके लिए भी वसीयत कर गए थे। मां-बाप के न रहने पर वह भी बेच दिया गया। यही सारा पैसा इकट्ठा करके और थोड़ा बहुत अपने पास से मिलाकर यह मकान बनवा पाए नहीं तो बी.एस.एफ. की नौकरी में पैसा है ही कितना।

-फिर भी यार वकीलों से तो लाख गुना अच्छी है ये नौकरी। मेरे मायके-ससुराल में भी काफी प्रॉपर्टी है। दो भाई हैं इसलिए मायके की प्रॉपर्टी के बारे में सोच ही नहीं सकती। ससुराल में ससुर की जिद है कि उनके जीते जी कुछ बिकेगा नहीं। देखो कब तक लिखी है ज़िंदगी में खानाबदोशी। खैर, यार तुमने अभी तक यह तो बताया ही नहीं कि फ़ोन क्यों किया। कौन सा टेंशन हो गया है तुम्हें।

-अरे हां, इतनी लंबी बात हो गई और जिस बात के लिए फ़ोन किया था वह तो रह ही गई। असल में नमन को जो लड़की ट्यूशन पढ़ाती थी उसकी कहीं नौकरी लग गई। उसने पहले से बताया नहीं और अचानक ही छोड़कर चली गई। अब नमन को पढ़ाना, उसका होमवर्क कराना ये मेरे वश का नहीं है। फिर वो मेरी सुनता भी नहीं। अभी से कहता है कि मम्मी तुम्हें कुछ आता-जाता नहीं, मैं तुमसे नहीं पढूंगा। जब तक सोता नहीं तब तक कार्टून चैनल देखा करता है या फिर लॉन में खेला करता है और कहीं मोबाइल हाथ लग गया तो अपनी सारी मौसियों से बात करता है या फिर गेम खेलेगा, इसलिए कह रही थी कि कोई अच्छा ट्यूटर हो तो बताओ।

-कोई ट्यूटर तो यार मेरी जानकारी में है नहीं। दिव्यांश को जो पढ़ाता है वो इनके किसी परिचित का लड़का है। यही उसे ले आए थे। मैं उससे कोई खास बात करती नहीं। बस जब आता है तो चाय-बिस्कुट वगैरह जा कर दे देती हूं।

-पढ़ाता कैसा है?

-पढ़ाता तो बढ़िया है। पहले वाले ट्यूटर की तरह केवल पढ़ाता ही नहीं बल्कि मैनर्स भी सिखाता है। दो महीने में ही दिव्यांश में बड़ा फ़र्क आया है। पढ़ाई, मैनर्स दोनों में।

-अरे यार तो भाई साहब से बोल कर मेरे लिए भी कह दो न, मैं इतने दिन से परेशान हूं।

-तुम्हारे लिए या नमन के लिए?

-अरे यार मतलब नमन के लिए ही। मैं थोड़े ही इस उम्र ट्यूशन पढ़ूंगी।

-हूँ... देखो आज जब ये आएंगे तब बोलूंगी इनसे। जैसा होगा कल बताऊंगी।

-ठीक है मैं तुम्हें कल दोपहर में फ़ोन करूंगी।

फ़ोन डिस्कनेक्ट होते ही हिमानी बुदबुदाई, ‘हां तो कह दिया इससे कि इनसे बात करके बताऊंगी, लेकिन यदि यह न मानेंगे तो वह बुरा मान जाएगी। दस जगह तरह-तरह की बातें करेगी। है भी बड़ी तुनक-मिजाज। बैठे-बिठाए इसने सिर दर्द करा दिया। मुझे पहले ही मना कर देना चाहिए था।’

शाम को अपने पति के लौटने पर जब हिमानी ने बात की तो छूटते ही वह बोले -

-तुम तो कहती हो बड़ी परपंच करने वाली औरत है। कहीं इसके चलते टीचर दिव्यांश को पढ़ाना न बंद कर दे।

-अब क्या बताऊं वो बिल्कुल पीछे ही पड़ गई तो एकदम से मना करते नहीं बना।

-ठीक है टीचर से बोल देता हूं। यदि टाइम है उसके पास तो पढ़ा दे। फीस वगैरह को लेकर तुम बीच में नहीं पड़ना।

-मुझे क्या ज़रूरत है बीच में पड़ने की। कल दिव्यांश को जब वो पढ़ा लेगा तो भेज दूंगी उसके पास, फिर वो दोनों जानें, मुझे कुछ नहीं बोलना बीच में।

अगले दिन टीचर को भेजने के बाद हिमानी ने फ़ोन किया

-हैलो... हां शिवा आज टीचर पहुंचा पढ़ाने के लिए?

-हां, टाइम का बड़ा पंक्चुअल लगता है।

-हां, पंक्चुअल तो है, और पढ़ाई कैसी लगी?

-अब पहले दिन तो सभी अच्छा पढ़ाने की कोशिश करते हैं। दूसरे एक ही दिन में समझना मुश्किल है। बड़ी बात तो यह है कि कहीं से वह टीचर लगता ही नहीं है। अपने को हीरो से कम नहीं समझता। एकदम विवेक ओबरॉय जैसा लुक बना रखा है।

-देखना हीरो के चक्कर में न पड़ जाना। वैसे विवेक ओबरॉय की कॉपी सा लगता है, बहुत मिलता है उसका चेहरा।

हिमानी ने शिवा को छेड़ा तो उसने तुनक कर कहा

-घबड़ा नहीं मैं तेरे विवेक के चक्कर में नहीं पड़ने वाली। पढ़ाता है ट्यूशन और नखरे हीरो जैसे, कि मैं चाय नहीं कॉफी पीता हूं। मेरा तो मूड ही खराब कर दिया था उसने, और पैसे भी ज़्यादा ले रहा है। मज़बूरी है इसलिए उसकी मुंह मांगी फीस देने को तैयार होना पड़ा।

-अरे, तुम तो नाराज हो गई। मैं तो मजाक कर रही थी।

-मैं भी मजाक ही कर रही हूं हिमानी कि जिसे तू हीरो समझ फिदा है उस पर मैं लाइन नहीं मारने वाली।

शिवा ने जोर से हंसते हुए हिमानी को छेड़ा तो उसने बात को विराम देने की गरज से कहा

-लाइन-वाइन मारने की उमर न जाने कब की निकल गई। अब तो उठने से लेकर सोने तक इन्हीं पर लाइन मारती हूं कि जनाब का मूड सही बना रहे।

-मतलब, लाइन तो मारती हो न भले ही पति को मारो।

-ओफ्फ तू तो बिल्कुल पीछे ही पड़ गई। बड़ी मस्ती में हो क्या बात है?

-कोई बात-वात नहीं यार। अच्छा कल पैरेंट्स मीटिंग है वहीं मिलते हैं। ठीक है।

-हां,ठीक है।

अगले दिन पैरेंट्स मीटिंग में मिलने के बाद भी दोनों के बीच ट्यूटर पुराण चर्चा का विषय बना रहा। चर्चा जब समाप्त हुई तो दोनों एक दूसरे के प्रति खासा तनाव लिए बिदा हुईं। फिर दोनों की हफ्तों बात नहीं हुई। फ़ोन पर भी नहीं। बच्चे स्कूल वैन से आते-जाते थे इसलिए मुलाकात का कोई बहाना भी न बना। इस बीच दोनों ट्यूटर के जरिए एक-दूसरे के बच्चे की पढ़ाई की स्थिति जानने का पूरा प्रयास करती रहतीं।

महीना भर भी नहीं बीत पाया था कि हिमानी से रहा नहीं गया। क्योंकि ट्यूटर इधर कई दिनों से शिवा और नमन दोनों की तारीफ कुछ ज़्यादा ही करने लगा था और आज पढ़ाने भी न आया। फ़ोन करने पर बराबर रिंग जा रही थी लेकिन वह कॉल रिसीव नहीं कर रहा था। हिमानी के मन में एकदम से यही बात उमड़ने-घुमड़ने लगी कि शिवा ने कहीं उसे भड़का कर मना तो नहीं कर दिया। यह बात मन में आते ही उसने न आव देखा न ताव शिवा को फ़ोन कर दिया, मगर फ़ोन उसके बेटे नमन ने उठाया। हिमानी ने उससे बड़े प्यार से कहा -

-नमन बेटा मम्मी कहां हैं? उनसे बात करा दो।

-मम्मी...मम्मी तो आंटी ऊपर हैं।

- अच्छा, तुम क्या कर रहे हो?

-मैं तो पढ़ रहा हूं।

-अच्छा, टीचर जी आए हैं क्या?

-हां आए हैं।

-तो बेटा जरा उनसे ही बात करा दो।

-लेकिन आंटी वो तो ऊपर हैं, मम्मी को पढ़ा रहे हैं।

-क्या! मम्मी को पढ़ा रहे हैं?

-हां।

-तुम्हें कौन पढ़ा रहा है?

-टीचर जी।

-ओफ्फो. तुमने तो अभी कहा कि वो ऊपर हैं।

-हां, वो मुझे पोएम लिखने, ई.वी.एस. का काम करने के लिए कह कर ऊपर मम्मी को पढ़ाने गए हैं।

-अच्छा! बेटा वो मम्मी को कब से पढ़ा रहे हैं?

-कई दिन से।

-बेटा याद करके बताओ कितने दिन से।

-ऊं.... आंटी टीचर जी मम्मी को फाइव दिन से पढ़ा रहे हैं।

- अच्छा! रोज ऊपर ही पढ़ाते हैं और तुम नीचे पढ़ते हो?

-हां।

-तो तुम ऊपर नहीं जाते।

-नहीं, टीचर जी कहते हैं जब तक मैं नीचे न आऊं तब तक पढ़ाई करते रहना, अपनी जगह से उठना नहीं।

-बेटा तुम मोबाइल तो मम्मी को जाकर दे सकते हो। मुझे उनसे ज़रूरी बात करनी है। मैं टीचर जी से कह दूंगी वो तुम्हें उठने पर डांटेंगे नहीं।

-नहीं आंटी, नहीं जा सकता। उन्होंने डांटने के लिए नहीं पीटने के लिए है। बोला है कि पढ़ाई छोड़कर उठे तो बहुत पीटूंगा।

-हूं ठीक है... ठीक है... बेटा मेरी समझ में अच्छी तरह आ गया है कि तुम्हारी मम्मी कौन सी पढ़ाई कर रहीं है। आश्चर्य तो यह है कि नकली विवेक ओबरॉय पर ही मर मिटीं। वह भी इतनी जल्दी।

-क्या कह रहीं हैं आंटी?

-अं.. कुछ नहीं, कुछ नहीं। मैं तुमसे कुछ नहीं कह रही थी।

-अच्छा आंटी मैं फ़ोन रखता हूं, मुझे जोर की शू-शू आई है।

-हां.... बेटा ठीक है जाओ।

हिमानी फ़ोन काटते हुए बुदबुदाई, ‘आदमी को देश की रक्षा करने से फुरसत नहीं और बीवी को बेटे के ट्यूटर के साथ गुलछर्रे उड़ाने से फुरसत नहीं, और बेटा बेचारा खुद ही स्टूडेंट है ,खुद ही अपना ट्यूटर भी। कहीं यह ट्यूटर के ही साथ फुर्र हो गई तो बेचारा नन्हीं सी जान कहां जाएगा।

लेकिन मैं कर भी क्या सकती हूं। इससे पूछताछ की तो निश्चित ही यह लड़ बैठेगी। बेवजह बखेड़ा खड़ा होगा। ये जानेंगे तो मेरी खैर नहीं। मगर इतना तो जरूर कहूंगी कि आज फ़ोन करें। अगर वह फ़ोन न रिसीव करे तो देर रात उसके फादर को फ़ोन कर कहें कि उससे बात कराएं, तब तक तो पहुंच ही जाएगा घर। उसे पढ़ाना है तो आए न आना हो तो बताए। मैं दिव्यांश के लिए कोई दूसरा ट्यूटर ढूंढ़ लूंगी। मैं दिव्यांश की पढ़ाई के साथ कम्प्रोमाइज नहीं कर सकती।’

हिमानी ने शाम को सारी बातें पति को बताई तो तुरंत ही वह यकीन न कर सके कि ऐसा कुछ हो सकता है और हिमानी से कहा कि ‘बिना कायदे से जाने-समझे इस तरह की बातें किसी के लिए न किया करे। रही बात फ़ोन करने की तो वह मैं कर लूंगा। हो सकता है वह पढ़ाना ही न चाह रहा हो।’

लेकिन उन्होंने जब ट्यूटर को फोन किया तो उसने न सिर्फ़ पहली ही बार में कॉल रिसीव कर ली बल्कि शालीनता से अगले दिन पढ़ाने के लिए आने की बात भी कही। यह भी बताया कि कुछ काम आ गया था इसलिए पढ़ाने नहीं आ सका था। उसकी बात ने हिमानी को पति के सामने पशोपेश में डाल दिया। लेकिन अगले दिन वह ट्यूटर फिर नहीं आया। हिमानी की कॉल भी रिसीव नहीं की तो उसका गुस्सा बढ़ने लगा। उसने तुरंत शिवा को कॉल किया। लेकिन उसने भी कॉल रिसीव नहीं की। इस पर वह अपना आपा खो बैठी। बेटे को घर पर ही छोड़कर रिक्शा कर पहुँच गई शिवा के घर। गेट-खोलकर अंदर पहुंची तो दरवाजा खुला मिला। उसने जान बूझकर न कॉलबेल बजाई और ना ही आवाज दी। एक तरह से दबे पांव दाखिल हो गई।

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